🔱 “दुर्गा चालीसा: संकट हरने वाली माँ की चमत्कारी स्तुति”🔱
“दुर्गा चालीसा: शक्ति, भक्ति और कृपा का दिव्य स्रोत”
दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा की स्तुति में रचित चालीस चौपाइयों का एक पवित्र ग्रंथ है, जो श्रद्धालुओं द्वारा नित्य पाठ किया जाता है। यह चालीसा शक्ति की देवी माँ दुर्गा की महिमा, उनके नौ रूपों और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन करती है। इसे पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, साहस और आत्मविश्वास का संचार होता है। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, इस चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है।
जो भी श्रद्धा और विश्वास के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसे माँ की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
॥ श्री दुर्गा चालीसा ॥
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
श्री दुर्गा चालीसा
अब आइए, माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिव्य स्तोत्र “श्री दुर्गा चालीसा” का पाठ करें! 🚩
॥ दोहा ॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तन बीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
आभा पुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
🙏🙏माँ अम्बे तेरा दरबार, भक्तों का विश्वास।🙏🙏
🙏🙏जो भी आए शरण में तेरी, मिटे सभी संताप॥🙏🙏
दुर्गा चालीसा का सही तरीका:
1. स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. माँ दुर्गा के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक जलाएँ।
3. चंदन, फूल और प्रसाद अर्पित करें।
4. शांत मन से श्रद्धा और भक्ति भाव से दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
5. पाठ के बाद माँ दुर्गा से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।