तुलसी माता की कहानी – सुनाने मात्र से ही मिल जाए मोक्ष

भागवत पुराण के अनुसार-तुलसी माता की कहानी

तुलसी माता की कहानी :-दोस्तो धार्मिक दृष्टि से कार्तिक मास में तुलसी की पूजा भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का माध्यम मानी जाती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में तुलसी के पौधे की सेवा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। क्योंकि तुलसी केवल एक पौधा नहीं , बल्कि यह देवी का रूप है।

तुलसी माता की कहानी

पुराणों में तुलसी माता को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है कि वे सदा उनकी पूजा का हिस्सा रहेंगी। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है। तुलसी के पत्ते चढ़ाने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इसलिए इसे विष्णुप्रिया और मोक्षदायिनी भी कहा जाता है ।

अब चलिए दोस्तों जानते हैं कि क्या है माता तुलसी की कथा क्योंकि कार्तिक मास में तुलसी माता की पूजा के साथ साथ उनकी कथा का भी विशेष महत्व होता है ।

कहानी के अनुसारएक समय भगवान विष्णु के परम भक्त जलंधर ने सभी देवताओं को युद्ध में पराजित कर दिया। जलंधर का बल इतना प्रचंड था कि स्वयं इंद्रदेव, वरुण, और अग्नि देव भी उसे हरा नहीं सके। इसका कारण यह था कि जलंधर की पत्नी वृंदा एक अत्यंत पवित्र और पतिव्रता स्त्री थी। उसके तप और भक्ति के कारण जलंधर को कोई पराजित नहीं कर सकता था।

देवताओं ने इस समस्या का समाधान पाने के लिए भगवान विष्णु की शरण में गए। तब विष्णु जी ने एक उपाय सोचा। वे जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास गए और उनका तप भंग कर दिया। जैसे ही वृंदा का तप भंग हुआ, जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और भगवान शिव ने उसे युद्ध में पराजित कर उसका अंत कर दिया।

जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर के रूप में बदल जाएंगे। इस श्राप को सुनकर विष्णु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे तुलसी के रूप में जन्म लेंगी और उनका स्थान उनके पास रहेगा। इसके बाद वृंदा का जन्म तुलसी के रूप में हुआ, और तभी से तुलसी को माता का दर्जा प्राप्त हुआ।

भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि जो भी व्यक्ति कार्तिक मास में तुलसी का पूजन करेगा, उसे विशेष पुण्य की प्राप्ति होगी। इस मास में तुलसी विवाह का आयोजन भी होता है, जिसमें तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम (विष्णु जी के स्वरूप) से किया जाता है। इस विवाह से व्यक्ति को संतान सुख, धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तुलसी माता की एक और कथा


तुलसी माता का प्राचीन महत्व हिंदू धर्म में अनगिनत कथाओं के रूप में वर्णित है। एक और कथा के अनुसार, तुलसी का जन्म देवी लक्ष्मी के श्राप के कारण हुआ था।

एक बार लक्ष्मी जी भगवान विष्णु के साथ वैकुंठ धाम में निवास कर रही थीं। वहां पर एक दिन भगवान विष्णु की शेर का रूप धारण करने की इच्छा हुई। उन्होंने गरुड़ जी को बुलाया और कहा कि वह उनके साथ थोड़ी देर के लिए शेर का खेल खेलना चाहते हैं। गरुड़ जी ने उन्हें शेर का रूप धारण करने में मदद की और भगवान ने एक विशाल शेर का रूप धारण कर लिया।

वैकुंठ में देवी लक्ष्मी को यह समझ में नहीं आया कि यह शेर कौन है। डर के कारण उन्होंने उस शेर को अपने स्थान से बाहर कर दिया। बाद में उन्हें पता चला कि वह शेर स्वयं भगवान विष्णु थे। इस बात पर विष्णु जी ने मजाक में लक्ष्मी जी को श्राप दिया कि वह पृथ्वी पर जन्म लेंगी।

इस प्रकार लक्ष्मी जी ने पृथ्वी पर एक सुगंधित और पवित्र पौधे तुलसी के रूप में जन्म लिया। धरती पर आने के बाद लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वह हमेशा उनकी पूजा में शामिल रहें। भगवान विष्णु ने उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार किया और तुलसी को यह वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति तुलसी के पत्तों को भगवान विष्णु को अर्पित करेगा, उसे विशेष पुण्य प्राप्त होगा और वह भगवान विष्णु का कृपा पात्र बनेगा।

तुलसी को पवित्रता, भक्ति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस कथा के आधार पर तुलसी माता का महत्व अत्यधिक बढ़ गया, और आज भी हर हिंदू घर में तुलसी का पौधा श्रद्धा के साथ लगाया जाता है।

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